Indian Nominated Films

Thursday 20 December 2012

पाकिस्तान को मिला पहला ऑस्कर पुरस्कार

 

पाकिस्तानी डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म 'सेविंग फेस' को सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री (शॉर्ट सब्जेक्ट) का पुरस्कार मिला है.
इस फिल्म का निर्देशन पाकिस्तान की शरमीन ओबेद चिनॉय और डेनियन जज ने किया है.

शरमीन ओबेद चिनॉय ऑस्कर जीतने वाली पहली पाकिस्तानी नागरिक हैं.

शरमीन की डॉक्यूमेंट्री 'सेविंग फेस' पाकिस्तान में चेहरे पर तेज़ाब फ़ेंकने की घटना का शिकार हुई औरतों की कहानी है.
इस फिल्म में ब्रितानी प्लास्टिक सर्जन डॉ मोहम्मद जावाद कि कहानी बताई गई है जो पाकिस्तान लौटकर तेजाब के हमलों के शिकार लोगों की मदद करते हैं.
डॉक्यूमेंट्री में एक ऐसी महिला की कहानी भी बताई गई है जो तेजाब फेंकने वालों को सजा दिलवाने के लिए लड़ाई लड़ती है.
शरमीन पहली पाकिस्तानी नागरिक हैं जिन्हें ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया और जिन्होंने ऑस्कर का कोई खिताब अपने नाम किया.

 

ऑस्कर ने किया 'द आर्टिस्ट' को सलाम

लॉस एंजेलेस में 84वें ऑस्कर समारोह मे मूक फिल्म 'द आर्टिस्ट' को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला है.
इसके अलावा 'द आर्टिस्ट' को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, सर्वश्रेष्ठ निर्देशन और सर्वश्रेष्ठ कॉस्ट्यूम का खिताब भी मिला है.

सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अवार्ड 'द आर्टिस्ट' के लिए ज़्याँ डूज्यारडिन ने जीता है.

वहीं 'द आयरन लेडी' में पूर्व ब्रितानी प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर की भूमिका निभाने वाली मेरिल स्ट्रीप को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला है.

सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए बेस्ट डयरेक्शन का अवार्ड 'द आर्टिस्ट' के लिए मिशेल अज़ानेविसयुस को मिला है.

Wednesday 19 December 2012

लीक से हट कर है फिल्म
Ted

वैसे तो साइन्स फिक्षन पर बहुत सी फिल्म देश विदेश मे बन चुकी है पर लीक से हट कर है फिल्म टेड इस फिल्म मे एक बच्चे और उस के दोस्त जो के एक गुड्डा है की कहानी दर्शाई गई है.

कहानी:- ये फिल्म आधारित है एक छोटे बच्चे पर जिस क साथ कोई भी खेलना पसंद नही करता इस के बाद वो बच्चा भगवान से विश करता है के उसका टेडी बेर उस से बात कर सके जिस से के उसको एक दोस्त मिल सके भगवान उसकी विश सुन लेते है और टेडी बेर मई जान आ जाती है फिर कैसे बच्चे के बड़े होने के बाद टेडी बेर की तरफ से मन्न हटना और टेडी का अपना जीवन नौकरी कर क बिताना कहानी इन्ही चीज़ो के इर्द गिर्द घूमती है. 


Sunday 16 December 2012

 लिंकन

 मचाएगी धमालऑस्कर में

न्यूयार्क फिल्म फेस्टिवल में मिली बड़ी सफलता के बाद अब स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म 'लिंकन' ऑस्कर में धमाल मचाने को तैयार है.

ये फिल्म अमरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की जीवनी पर बनाई गई है. इस फिल्म में लिंकन की भूमिका दो बार ऑस्कर जीत चुके डेनियल डे लुईस ने निभाई है.

समारोह में मौजूद आलोचकों ने ट्विटर पर लिखा है कि लंबे समय बाद स्पीलबर्ग ने एक बेहतरीन फिल्म बनाई है.

फिल्म की पहली स्क्रीनिंग न्यूयार्क फिल्म फेस्टिवल में होने के बाद से ही पूरे हॉलीवुड में ऑस्कर को लेकर चर्चा गर्म है.
फेस्टिवल में फिल्म 'लिंकन' को जिस तरह का रिस्पांस मिला है, उससे लग रहा है कि फिल्म को कई श्रेणी में अवार्ड मिल सकते है.
जानकारों के मुताबिक फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ निदेशक की श्रेणी में ऑस्कर मिलने की गुंजाइश काफी ज्यादा है.

चार ऑस्कर तय है

एडवर्ड डगलस ट्विटर पर लिखते हैं, “ये फिल्म असली विजेता है, पिछले कई सालों में ये स्पीलवर्ग की सबसे अच्छी फिल्म है, इस फिल्म को 12 ऑस्कर मिलने की गुंजाइश है और कम से कम चार 4 तो मिलेगे ही ”
'दि हफिंग्टन पोस्ट' ने लिखा है, “काफी बड़ी उपलब्धि है, फिल्म लाजबाब है”
फिल्म बताती है कि, “लिंकन जितने ऊर्जावान व्यक्ति थे उतने ही दिलेर भी, उनकी गर्मजोशी से भरी आवाज निश्चित तौर पर स्टीवन की खोजी और ऐतिहासिक जानकारी का कमाल है”
'एल ए टाइम्स' ने लिखा है, पर्दे पर और कैमरे में डे लुईस को देखकर उनका मूल्यांकन करने के बाद ऐसा लगता है जैसे वही असली विजयी अभिनेता हैं, और ऑस्कर के फेवरेट भी”
फिल्म को स्क्रीन प्ले सपोर्टिंग कास्ट के लिए भी ऑस्कर मिलने की उम्मीद जताई गई है.

 

जब तक है जान

इतनी लंबी है क देखते देखते जान निकल गई

'प्यार में मिलना, मिलकर बिछड़ना और एक बार फिर मिलना' यही है फिल्म 'जब तक है जान' की कहानी. कहानी के मध्य में हैं शाहरुख़ खान, उनके इर्द-गिर्द हैं कटरीना कैफ और अनुष्का शर्मा.

कहानी लंदन से लद्दाख, लद्दाख से कश्मीर घाटी होती हुई फिर लंदन पहुंचती है और एक चौराहे पर खड़ी हो जाती है. कहानी का अंत लंदन की गलियों में होता है या फिर कश्मीर की वादियों में इस राज़ पर से मैं पर्दा नहीं हटाना चाहता.
लेकिन अंत के अलावा और कई बातें मैं आपको बता सकता हूं. जैसे मैं आपसे ये कह सकता हूं कि फिल्म के हर दृश्य में आपको यश चोपड़ा के 'रोमांस' की छाप मिलेगी.
वैसे ये फिल्म हर फिल्म की तरह एक आम सी फिल्म है इस मे ना तो कोई ख़ास रोमॅन्स देखने को मिला नही पठकता मे कसाओ होने का एहसास होआ. वैसे तो यश जी की ये आखरी फिल्म है पर ना जाने क्यो फिल्म मे कोई ख़ास खिंचाओ नही है.

खेर जिन लोगो को सिनेमा हॉल मे समय बिताना पसंद हो उन क लिए ये फिल्म बिल्कुल ठीक है बाकी गंभीर और रचनात्‍मक फिल्म प्रेमियो के लिए ये फिल्म डब्बा गोल है. 

लाइफ़ ऑफ पाई


एक बढ़िया फिल्म के लिए उसकी शुरुआत,मध्य और अन्त का अच्छा होना ही ज़रुरी नहीं है, साथ ही महत्वपूर्ण है निर्देशक किस तरह अपनी कल्पना को पर्दे पर प्रत्यक्ष रुप से उतार पाता है, खासतौर पर ऐसी फिल्म जिसमें प्रकृति का अहम रोल हो.

लाइफ ऑफ पाई एक ऐसी अनोखी दास्तान है जो आपको एक अलग दुनिया में ले जाती है. ये फिल्म प्रकृति के प्रति हमारी निष्ठा पर एक गहरा सवाल उठाती है. कल्पना और यथार्थ के बीच झूलती ये कहानी वैसे तो सिर्फ एक घटना दिखाती है पर साथ ही एक गहरा आध्यात्मिक असर भी डालती है.


यैन मार्टल के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म के निर्देशक हैं आंग ली जिन्होंने क्राउचिंग टाइगर हिडन ड्रेगन और ब्रॉकबैक मांउंटेन जैसी ऑस्कर विजयी फिल्में दी हैं. लाइफ ऑफ पाई में आंग ली ने बेहद ही लुभावने और प्राकृतिक दृश्य फिल्माए हैं.


निर्देशक ली ने मनुष्य और पशु में जीने की लालसा को दिखाया है तो दूसरी तरफ दोनों के बीच का समन्वय भी बखूबी दर्शाया है.
फिल्म के कुछ दृश्य, ख़ासतौर पर लाइफ बॉट पर पाई और शेर के बीच फिल्माए दर्शाए दृश्य काफी प्रभावशाली बन पड़े हैं. 

पर आजकल हम सबको मालूम है कि ये सब कम्प्यूटर ग्राफिक के सहारे कितना आसान हो गया है इसलिए सब कुछ अच्छा लगते हुए भी मन को बहुत भाता नहीं है.
पाई का रोल निभाने वाले सुरज शर्मा का अभिनय बेहद सहज और स्वाभाविक है. व्यस्क पाई के छोटे से रोल में भी इरफान ने छाप छोड़ी है.
पर इन सबके बीच आप शायद रिचर्ड पार्कर के रुप में बंगाल टाइगर को भी चाहने लगेंगे.


 

आमिर की तलाश

मानना पड़ेगा कि फ़िल्म की कसी हुई पटकथा, अच्छी लिखाई और अच्छे अभिनय ने मुझे पूरे समय बांधे रखा. विद्या बालन की फ़िल्म कहानी के बाद सस्पेंस से भरपूर ये दूसरी ऐसी कहानी है जो कुछ अगल है. इससे पहले आपका संदेह यकीन में बदले मैं ये बता देना चाहूंगा कि तलाश कहीं से भी फ़िल्म कहानी से नहीं मिलती, जैसे की कुछ मीडिया में कहा जा रहा था.

लेकिन मैं ये भी बताना चाहूंगा कि जो लोग हॉलीवुड की इस श्रेणी की फ़िल्मों से प्रभावित रहते हैं, उन्हें कहीं भी हिचकॉक नज़र नहीं आएंगे. तलाश एक तेज़ गति की ना सही पर एक बेहद पहेलीनुमा मौलिक कहानी है.
फ़िल्म एक सस्पेंस कहानी के सारे पहलुओं पर खरी तो उतरती है साथ ही एक मर्डर मिस्ट्री थ्रिलर जैसी फ़िल्मों से कहीं हटकर है.
फ़िल्म में और सब कुछ होते हुए कहानी के कई किरदारों की निजी जिंदगी की कहानी भी कही जा सकती है जिसमें प्रेम, लालच और एक घातक आकर्षण भी है,पर इन सबमें भी एक नयापन है.


तलाश उन लोगों को ज़रुर पसंद आएगी जो इंटेंस कहानी और फ़िल्म की खोज में रहते हैं. ये फ़िल्म एक मिस्ट्री होते हुए भी बहुत गंभीरता से एक ताकतवर विषय से जूझती है.